पहली बरखा,
गीले पेड़ गीले पात
नीला अम्बर
हुआ बादली,
तपती पछुआ
हुयी सुरीली,
मस्त मेढ़कों की
टोली ने
धुन छेड़ी अलबेली ,
गाये चिड़िया
गाये तितली !
भींगी घरती
पत्तों के कोरों से
टप टप
निथर रहा अमृतजल ,
अगहन झुलसी
पियरी माटी
पी पी पानी
हो रही है चन्दनी !
उठती सुवर्ण गन्ध
से मदमाते
हरे आम
हो रहे हैं पीले,
भींगी घरती
पहली बरखा!
गढ़हे में
भर आया है
छिछला पानी ,
टेंटा-दल कर रहा
मनमानी,
पंख पंख
वारिद मोती
उड़ते फर फर,
भींगी घरती
पहली बरखा!
(सभी चित्र वेब से साभार)
वाह,वह सोंधी गंध चिर पहचानी
ReplyDeleteलाज़वाब ��
ReplyDeleteअति सुंदर ।
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