Saturday, August 11, 2012

काई

मन ,
जैसे काई हो ...
जम गया हो
समय की चिकनी फर्श पर
छितरा हुआ ....

3 comments:

  1. बहुत खूब , बधाई .

    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारें , अपनी प्रतिक्रिया दें , आभारी होऊंगा .

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  2. कई और उबकाई में कितना ध्वन्यात्मक साम्य है न ?

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