Saturday, July 30, 2011

विस्मृत....... सदा के लिये !


दर्द ठीक हो गया
तो बची रह गयी
अगली खुराक ,
मेज पर पड़ी है
धूल फांकती,
किसी दिन फेंक दी जायेगी
एक अर्थहीन निर्मम
सहानुभूति के साथ ।

कुछ ऐसे ही
पुरानी कापियों के पिछले पन्नों में
आधी ढरक कर
बिना पूरा हुये ही
चुप हो , ठहर कर
सूख गयी है
कई
तरह तरह की
विचित्र और अद्भुत
कविताएं  !
किसी दिन
अपनी अपूर्णता के सन्दर्भ  में
परिभाषित होकर
कर दी जायेगी
विस्मृत
सदा के लिये !

4 comments:

  1. जो प्रगट नहीं हुयी वह फिर कविता कैसे हुयी?

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  2. apki kavitaye kavita hote hote vaicharik nibandh ho jaya karti hain...kavita bhav vyapar hai bhai...vichar vimarsh nahi

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  3. ऐसा भी हो सकता है कि पुरानी कापियों के पीछे के पन्नों में सिमट जाने लायक ही रही हों वे पंक्तियाँ. भावावेश के क्षणों में ऐसी ढेर पंक्तियाँ ढुलकती हैं पर विस्तार लेने से पहले ही उपेक्षित हो जाती हैं अपने ही हाथों.
    दर्द खत्म हो जाने के बाद दवा की खुराक और भावावेश खत्म होने के बाद बच गयी कविता.....अच्छा है , भाई .

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