खुद ही सब कुछ छोड़ आये हैं
फिर भी एक कतरा बेजुबान सी
उम्मीद है कहीं कि
वहां से आवाज आयेगी
फिर कोई !
सबको पहचानते थे बखूबी
रंग रंग से वाकिफ थे उनके
फिर भी सबके सामने कर दिया इन्कार
किसी एक को भी पहचानने से
(वह ’एक’ ही ’कई’ होकर आया था !)
तब भी एक बात बेबात सी है मन में
कि वे आयेंगे बुलाने हमको
फिर कभी !
दर्द को मांगने
लब्ज आया तो था
हमने गुरूर में कह दिया, जाओ !
तुम्हारे बस की बात नहीं ,
मिलेगें,
फिर कभी !