Friday, April 17, 2009

श्श्श्श...चुप !!

1.
. . . .श्श्श्श्श्श्श्श्श . . .चुप ! ! ! !
घात लगाये ,
छत मुड़ेर पर,
अभी
टिकुरी बैठी है बिल्‍ली . . .. . .।


2.
शोर न करो,
धीरे धीरे आओ
छत पर फैला गेहूं
कुचुर कुचुर खा रही है
सजग गिलहरी ।

5 comments:

  1. ऐसा भी लिख रहे हो आजकल । ठीक ही है, इसमें छुपा कोई अर्थ हम निकाल लेंगे ।

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  2. बिल्‍ली और गिलहरी के लिए श्‍श्‍श्‍श्‍ ... यानि चुप्‍पी।

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  3. श्श्श्श्श्श्श्श्श . . .चुप ! ! ! !
    घात लगाये ,
    छत मुड़ेर पर,
    अभी
    टिकुरी बैठी है बिल्‍ली . . .. . .।

    वाह....बहुत खूब....बिलकुल अलग हट के एक नयी पहचान के साथ आये हैं आप....!!

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  4. भाई , बिम्बों में कही गयी पूरी कविता सर के ऊपर से निकल गयी.
    इसे समझने के लिए तो कुंजी का सहारा लेना पड़ेगा.

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