Friday, January 1, 2010

सन्नाटा


अलग होते मुझ के साथ

बहुत दूर तक टूटा नहीं

तुम्हारी पुकार का स्वर !

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दूर निकल आये मुझ के साथ

उस स्वर के पीछे बचा

सन्नाटा अब भी है !

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सुनायी देता है लेकिन

सुनता नहीं हूँ

उस सन्नाटे का खालीपन !

6 comments:

  1. सुनायी देता है लेकिन

    सुनता नहीं हूँ

    उस सन्नाटे का खालीपन !

    -सुन्दर पंक्तियाँ!

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  2. सन्नाटे की रिक्तता को अनुभूति बनाये यह कौन है भास्वर कवि?

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  3. जैसे विलंबित में कोई करूण पुकार टूटकर अचानक
    गहराती है मौन को.
    यूं ही ये पंक्‍ति बन गई ये कविता पढ़कर.

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  4. तुम , ’उसने’ कहा, बस इसलिये...
    फिर !
    मुझे तो द्वैध दिखता है भई ! मुझ-स्वर-सन्नाटे के बीच का खालीपन भी !

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  5. हम बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है :)

    "उस सन्नाटे का खालीपन !" की जगह "उस सन्नाटे को" कैसा रहेगा ?

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