Saturday, September 23, 2017

कोयले में घुस गयी कविता: पुराने दिनों की चुल्ल ! वर्ष 2010




बहुत पहले
कुछ हरे पेडों को खा गयीं थी चट्टानें !
पेड़ॊं की फिर से हरा होनें ,उगनें की
जिजीविषा को, इच्छा को पीस पीस कर
अपने भीतर समोती रही चट्टानें!
किन्तु अन्ततः
उनमें न मिटने की स्पृहा के ताप से
जल कर काली हो गयी थी चट्टानें !
एन्र्थासाइट बिटुमिनस लिग्नाइट !






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