तुम्हारी अन्धेरी सुबकनों को अपने स्नेह की लय में डाल जिसने उन्हें धीमी मुस्कराहटों के संगीत में बदल दिया .... अपने इस क्षणिक उत्कर्ष में उसे यूं विस्मृत न करो ! यथार्थ की क्रूर वीथिकाओं में गतिशील, निर्मम कालगति से अनुबन्धित जीवन के गहन वात्याचक्रॊं से लय न मिला सकी तुम्हारी डगमगाती लड़खड़ाती हॄदय की थापों को अपने तरल प्रांजल उर्जस्वल शीतल अंकों में निःशेष सोख अपने अन्तस की उष्मा के निःस्वार्थ दान से जिसने उन्हें चुप नहीं होने दिया ……..उसे इस विश्व--मरूस्थल में उत्थान व श्रेष्ठता की मरीचिकाओं के पीछे इस तरह न बिसारो ……….कृतज्ञता यदि अन्तस से हुलस कर छलक न सकी है और आह्लाद में उमगकर यदि अस्तित्व नतप्रणत नहीं हो सका है ....तो......सप्रयास कर भावों का सृजन व संकलन खुद में विकसने दो एक घनी कृतज्ञता.....कृत्रिम नहीं....सृजित..!!!!!....अहर्निश...अक्षुण्ण…..संलग्न...!
सुन्दर!!!
ReplyDeleteखतरनाक हिंदी यूज की है आपने भई..मगर प्रवाहमयी.
ReplyDeletehindi to aapki sachmuch khatarnaak hai...
ReplyDeleteaapne jo kahi hai vah baat to utkrisht hai...aur do 2....3....4..baar padne k baad samajh payee hoon....phir bhi ek prashna shesh reh gaya hai...ki yeh lekh samarpit kise hai...meri samajh ise mata...athva gurujan ki or ingit kar rahi hai....
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