Monday, June 15, 2009

किसने किसको


अस्तित्व हमारा
उधार की एक रकम है ।

किसी ने दिया है
किसी को एक दिन
पाई- पाई वापस
ले लेने के लिये ।

लेकिन समस्या
हमारी यह है कि
हम यानी रकम
बड़ी आप-धापी में हैं
भागा-दौड़ी,उठा-पटक में है ।
कारण के तौर पर साफ है कि
हम ये समझ नहीं पा रहे हैं
(या समझना नहीं चाह रहे हैं )
कि हमें
किसने
किसको
दिया है ।
हमारा मालिक असली कौन है ,
कौन विश्वसनीय है पूजार्ह कौन है ,
जिसे हम दिये गये हैं वह ,
या जिसने हमें दिया है वह ।

5 comments:

  1. बहुत गहरे भावो़ से ओतप्रोत कविता के लिये बधाई

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  2. यार तुम्हारी हिन्दी के तो हम कायल हैं, हर बार ढूँढ़-ढूँढ़ के शब्द लाते हो और नयी कविताएँ पढ़वाते हो

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  3. मानव अस्तित्व के लिए रकम का बिम्ब बहुत ही नवीन और सटीक लगा.
    एक दार्शनिक प्रश्न लिए हुए है कविता.
    परन्तु, कवि ने प्रश्न करके छोड़ दिया है. मुझे लगता है कि उत्तर के रूप में कवि का अपना मत कविता को और अधिक मायने दे पाता.

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  4. aabhar kavita ke us lekhak ko jisne
    ishwar aur insan ke bich unsulajhe
    rishton ki thah naap ka ek raasta dikhaya .

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