प्रणय का उत्कर्ष जो है
स्वप्न का उल्लास जो है ,
सोचता हूं कैसा होगा वह मिलन !!!
आशाओं का आलम्ब जो है
प्रेरणाओं का उद्गार जो है
सत्य का सन्धान जो है
असत्य का स्वीकार जो है ,
सोचता हूं कैसा होगा वह मिलन !!!
प्रछन्न दो अस्तित्व जो है
विलग चेतना के व्यापार जो हैं
मध्य के अवकाश जो है
प्रत्येक का जब होगा उन्न्यन ,
सोचता हूं कैसा होगा वह मिलन !!!
प्रत्येक क्षण एक प्रयास जो है
स्पर्श की अभिलाष जो है
उत्क्षिप्त मन के भटकाव जो है
सभी का जब होगा उन्मीलन
सोचता हूं कैसा होगा वह मिलन !!!
इतना गंभीर लिखने का साहस कर जाते हो । पर कुछ बिखराव क्यों दिख रहा है मुझे ? या मुझे ही क्यों दिख रहा है ? पता नहीं ।
ReplyDeleteअद्भुत !!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर !!!
हर पंक्ति बेमिसाल !!!
िस उम्र मे इतनी संवेदनशील अभिव्यक्ति की यात्रा बहुत सुन्दर किसी दिन आकाश छू लोगे बधाई
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी यह रचना
ReplyDeleteWaah !!
ReplyDeleteVishwaas karna mushkil ho raha hai ki itni proudh rachna aapne likhi...
Bahut bhut sundar....
aise hi likhte rahen...shubhkaamnaye.