हम टूट गये ।
टूट जाती है बीच से जैसे
सूखी लकड़ी ।
झिप गयी चमक
उल्लसित स्वप्नों की आभा से दीप्त
हमारे नयनों की ।
झर गये आह्लाद- सौरभ ,
विह्वल मन की मधु-तृषा प्रतानें
क्लांत हुयी ।
इसलिये
कि
कुछ तुममें था
जो मुझे तुम्हारे पास ले गया था ।
और
कुछ मुझमें था
जो तुम्हें मेरे पास लाया था ।
शायद इसलिये ही हम टूट गये…………..! ! !
काश !
मैं मुझमें ही कुछ खोज पाता
जो मुझे तुमसे संलग्न करता ।
काश !
तुम खुद में ही कुछ देख पाते
जो तुम्हें मेरा पता देता ।
हो सकता है ,
तब……….न टूटते हम……….!!!
टूट जाती है बीच से जैसे
सूखी लकड़ी ।
झिप गयी चमक
उल्लसित स्वप्नों की आभा से दीप्त
हमारे नयनों की ।
झर गये आह्लाद- सौरभ ,
विह्वल मन की मधु-तृषा प्रतानें
क्लांत हुयी ।
इसलिये
कि
कुछ तुममें था
जो मुझे तुम्हारे पास ले गया था ।
और
कुछ मुझमें था
जो तुम्हें मेरे पास लाया था ।
शायद इसलिये ही हम टूट गये…………..! ! !
काश !
मैं मुझमें ही कुछ खोज पाता
जो मुझे तुमसे संलग्न करता ।
काश !
तुम खुद में ही कुछ देख पाते
जो तुम्हें मेरा पता देता ।
हो सकता है ,
तब……….न टूटते हम……….!!!
समझ रहा हूँ अभिषेक । कई बार ऐसे ही बहुत कुछ खोजते स्वयं का परिचय देखा है मैंने तुम्हें । कहाँ, क्या बताना ?
ReplyDeleteकाश !
ReplyDeleteमैं मुझमें ही कुछ खोज पाता
जो मुझे तुमसे संलग्न करता ।
काश !
तुम खुद में ही कुछ देख पाते
जो तुम्हें मेरा पता देता ।
बहुत ही खूबसूरत
बहुत अच्छे आर्जव
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