आर्जव
Thursday, May 15, 2025

समाप्ति

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तुम्हारे बिना जाने   मर जाने को  स्वीकार कर लेना  वास्तविक समाप्ति है उन सब की  जो हमारे बीच था,  प्रेम जैसा 
Sunday, October 23, 2022

पुराने शहर

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बड़े   शहरों   से   बचकर   हम   लौट   आते   हैं   पुराने   छोटे   शहरों   में   साल   के   कुछ   दिन   पुराने   शहरों   में   तेज़ी   से   ब...
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Saturday, July 9, 2022

तब तक रुकोगे क्या तुम ?

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 एक फूल खिलेगा  हवा चलेगी  मौसम ठंडा होगा !  तुम रहोगे क्या तब तक ?  जब मैं  लौटूँगा  जब सब ठीक होगा  सांझ सुन्दर होगी  पक्षी लौटेंगे  नीला ...
Saturday, January 22, 2022

हरियाणवी हास्य ग़ज़ल

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थोड़ी देर की ख़ामोशियाँ भी परेशान कर देती थी  क्या हुआ कुछ हुआ क्या की फ्रिक हो जाती थी  इश्क़ की शुरुआत के ये दिन भी क्या दिन थे , अच्छा!  ...
Friday, January 21, 2022

हस्तक्षेप

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  यह   जगह   किसी   और   की   स्मृति   में   हैं इस   जगह   की   स्मृति   में   कोई   और   है   मैं   अपने   वर्तमान   के   साथ   इन   सब   ...
Wednesday, January 19, 2022

माधवी

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  थमनें   दो   नये   नये   परिचय   की उन्मादी   गरज   बरस   धुन्ध   धुएं   से   छाये   आवेगों   की   स्नेहिल   बौछारों   को  !  तुम्हारे   म...
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Sunday, January 16, 2022

दिसंबर व धूप

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  दिसंबर   के   कमजोर   अपराह्न   में   सूरज   की   स्मृतियों   से   छीजती   धूप   कमरे   में   तिरछे   दाख़िल   होती   है   शेल्फ़   पर   र...
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आत्मकथन

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अभिषेक आर्जव
बनारस,दिल्ली , India
"हार कर हर मोरचे पर/ जीत ही मैं लिख रहा हूँ, आज के इस दौर में भी, गीत ही मैं लिख रहा हूँ....... ."
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