दिसंबर के कमजोर अपराह्न में
सूरज की स्मृतियों से छीजती धूप
कमरे में तिरछे दाख़िल होती है
शेल्फ़ पर रखे सामानों की छायाएँ
पीली दीवार पर उकेरतीं !
कमरे के भीतरी ठण्डेपन में
छायाएँ एक-दूसरे में गड्ड मड्ड होती हैं
जैसे जीवन के दूसरे हिस्से में
गड्ड मड्ड हो जाते हैं
मन के कई सारे भाव
उदासी नेह विछोह अपनत्व
एक दूर दूर का, अ वैयक्तिक सा ख़ालीपन
बहुत सी टीसों को ऐसे देखता है
जैसे शेल्फ पर पड़े सामान
एक दूसरे को
दिसंबर के इस अपराह्न में
अनचीन्हे दुख
हवाओं की विदीर्ण नमी पर
दीवार की पीली छायाओं पर
धुंधले आसमान पर
किसी तृप्त अकेलेपन की तरह
फैलते रहते हैं
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