Friday, May 15, 2020

गति

मैं डरता हूं

वह कवि होने से

जो अपने ही बिम्बों की फफूंद में

भटक  जायेगा.

 

जो खुद को

अपने कहे अर्थों का 

जिम्मेदार मानेगा.

 

जिसे विश्वास हो चला है भाषा में

शब्दों पर,

उनके पुराने अर्थों में, पूरा.


जो कविता को लेकर 

जाना चाहता है

एक स्थान से

दूसरे स्थान पर.

 

           मैं डरता हूं

1 comment:

  1. जब शब्दों में विश्वास है तो डरना क्या।

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