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मूल्य , अस्मिता और संवेदनायें
वर्षों पहले पुते चूने की पपड़ी-से
झरते दिखते
होंगे तुम्हे
हास्पीटल के उस कमरे में
जहां तुम्हारी क्लान्त आत्मा
अपनी क्षत-विक्षत देह की गुदड़ी
लपेटे
समय के वेन्टिलेटर पर पड़ी होगी !
तुम्हारी भीगी सूखी
बन्द पलकों के अन्धियारों
में
भटकते होगें वो कई अनाथ निश्छल प्रश्न
जो तुम्हारी आत्मा ने गीली आर्त ध्वनि में
पूछा होगा काल पुरुष से !
और वह मुंह फेर चुप रहा होगा !
चुप रहा होगा इस बात पर कि
तुम्हारे इस छोटे से हिस्से में उगा , फैला
आदमी का यह बसाव
परिमार्जन और विकास की इतनी कबड्डियों के बाद
भी
इतना विषण्ण ! इतना हीन ! कैसे ?? !!!
धर्म , दर्शन , विज्ञान और तकनीक की
संलग्न अनुशंसायें लिये फिरता यह जीव
भौतिकी से परा भौतिकी की सुर्तियां चुभलाता यह
जीव
इतना कुत्सित ! इतना जघन्य ! कैसे ?? ! !
त्रास !
काल-पुरुष मौन होगा ! अनुत्तरित !
intazaar h... ye maun kb tootega...??
ReplyDeleteसचमुच इतना कुत्सित ! इतना जघन्य ! कैसे ?? ! !
ReplyDeleteअति सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteभाई बहुत दिनों बाद मुखरित हुए लेकिन अपने उसी अंदाज़ में।
ReplyDeleteआप की कविताओं की प्रशंसा के लिए शब्द नहीं ढूंढ पाता हूँ। अभी कुछ दिनों पहले चंद्रकांत देवताले को ज्ञानपीठ देने की घोषणा हुयी है। मुझे पूर्ण आशा है कि एक दिन उस सूची में एक दिन आप का नाम अवश्य होगा। आज के कवियों में कोई भी ऐसा दिखाई नहीं देता है जो आपके समकक्ष हो।
ढेरों शुभकामनाओं के साथ ...
इतनी महत्वाकांक्षी शुभाशंसाऎं ! ! ! बाप रे !
Deleteहम लिखते रहेगें , बाकी आपके स्नेह और प्रोत्साहन से जो होता रहे , हो !
:)