आज मैंने
अपने भगवान जी पर
एक एहसान किया
मन में फुदक आयी
एक अनरगल इच्छा को
भगवान जी से बिना कहे
मन ही में खुरच खुरच कर ,
भगवान जी से बिना कहे
मन ही में खुरच खुरच कर ,
खिरच खिरच कर
खत्म कर दिया !
शाम को रोज की बात चीत में
यह सब उनसे कह खुश हुआ ।
रोज की तरह
वे भी कुछ बोले नहीं
यह सब उनसे कह खुश हुआ ।
रोज की तरह
वे भी कुछ बोले नहीं
बस थोड़ा सा मुस्कुराये ।
बहुत सुन्दर रचना == गहरे अर्थ.
ReplyDeleteआर्जव तुम्हारे लिये मेरे ब्लोग पर कुछ है :
http://ghazal-geet.blogspot.com/2009/10/blog-post_26.html
kya baat hai bhaiye
ReplyDeletekaafi kuchh kah diya
बहुत सुन्दर कविता बधाई
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteशब्दों का पूरा अर्थ निचोड़ लिया आपने............
गज़ब !
बहुत सुंदर और प्यारी कविता
आत्मिक कविता ----आध्यात्मिक कविता ..
चलो, कम से कम मुस्करा दिये..
ReplyDeleteबहुत सरल हृदय का आभास देती सुंदर कविता........
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद कहना चाहती थी पर प्रतिदान पढ़कर रुक गई...
बंधुवर आपकी हर रचना मे इतनी सहजता है की कोई भी आपका मुरीद हो जायेगा
ReplyDeleteवाह! मुस्कराते हुए का एक फोटो भी खींचकर लगा देते तो मैं भी देख लेती।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
दी ग्रेट कान्फेसन !
ReplyDeleteऊपर वाले का मुस्कुराना भी तो बहुत कुछ सन्देश देता है ......... अच्छा लिखा है .......
ReplyDeleteअहा !!!
ReplyDeleteकितनी सुन्दर बात कही है .