Monday, October 26, 2009

दोस्ती


आज मैंने
अपने भगवान जी पर
एक एहसान किया

मन में फुदक आयी
एक अनरगल इच्छा को
भगवान जी से बिना कहे
मन ही में खुरच खुरच कर ,
खिरच खिरच कर
खत्म कर दिया !

शाम को रोज की बात चीत में
यह सब उनसे कह खुश हुआ ।
रोज की तरह
वे भी कुछ बोले नहीं
बस थोड़ा सा मुस्कुराये ।

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना == गहरे अर्थ.
    आर्जव तुम्हारे लिये मेरे ब्लोग पर कुछ है :
    http://ghazal-geet.blogspot.com/2009/10/blog-post_26.html

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  2. बहुत सुन्दर कविता बधाई

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  3. वाह !

    शब्दों का पूरा अर्थ निचोड़ लिया आपने............

    गज़ब !
    बहुत सुंदर और प्यारी कविता

    आत्मिक कविता ----आध्यात्मिक कविता ..

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  4. चलो, कम से कम मुस्करा दिये..

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  5. बहुत सरल हृदय का आभास देती सुंदर कविता........

    अपनी कविता पर आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद कहना चाहती थी पर प्रतिदान पढ़कर रुक गई...

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  6. बंधुवर आपकी हर रचना मे इतनी सहजता है की कोई भी आपका मुरीद हो जायेगा

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  7. वाह! मुस्कराते हुए का एक फोटो भी खींचकर लगा देते तो मैं भी देख लेती।
    घुघूती बासूती

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  8. दी ग्रेट कान्फेसन !

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  9. ऊपर वाले का मुस्कुराना भी तो बहुत कुछ सन्देश देता है ......... अच्छा लिखा है .......

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  10. अहा !!!

    कितनी सुन्दर बात कही है .

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