आकस्मिक मत समझना मेरी उस चुप्पी को
जो तुम्हारी उस निरभ्र, मध्दिम फुसफुसाहट
कि “मैं चाहती हूँ तुम्हें”
पर फैल गयी थी
पूरे मुझ पर !
चुप
या यूँ कहो कि
निरुत्तर ही रहना चाहता था मैं
अपने भीतर की अनजान अधेरी तहों में
इस फुसफुसाहट के ठीक इसी तरह
ख़ुद के लिए ही एक गंभीर प्रश्न
और फिर सहसा एक सरल उत्तर बन जाने तक……..
जो तुम्हारी उस निरभ्र, मध्दिम फुसफुसाहट
कि “मैं चाहती हूँ तुम्हें”
पर फैल गयी थी
पूरे मुझ पर !
चुप
या यूँ कहो कि
निरुत्तर ही रहना चाहता था मैं
अपने भीतर की अनजान अधेरी तहों में
इस फुसफुसाहट के ठीक इसी तरह
ख़ुद के लिए ही एक गंभीर प्रश्न
और फिर सहसा एक सरल उत्तर बन जाने तक……..
यह चुप्पी प्रश्न है या उत्तर , सोच-सोच कर पगलाये मन .
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