Monday, December 15, 2008

तुम्हारा चाहना


आकस्मिक मत समझना मेरी उस चुप्पी को
जो तुम्हारी उस निरभ्र, मध्दिम फुसफुसाहट

कि “मैं चाहती हूँ तुम्हें”
पर फैल गयी थी
पूरे मुझ पर !


चुप
या यूँ कहो कि
निरुत्तर ही रहना चाहता था मैं
अपने भीतर की अनजान अधेरी तहों में
इस फुसफुसाहट के ठीक इसी तरह

ख़ुद के लिए ही एक गंभीर प्रश्न
और फिर सहसा एक सरल उत्तर बन जाने तक……..

1 comment:

  1. यह चुप्पी प्रश्न है या उत्तर , सोच-सोच कर पगलाये मन .

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