जब
दुनिया गर्म हो चुकी होगी बहुत
तब भी
थोड़ी ठण्डक बची रहेगी
कविता में।
जब ऊपर नीचे
चहुंदिश
होगी ध्वनि ही ध्वनि
जीवन के एकमात्र निशान की तरह
थोड़ा सा सन्नाटा
बचा रहेगा
कविता में।
नहीं होने की कगार पर
पहुंच चुकी हर चीज़
सिर्फ संग्रहालयों
संरक्षित अभयारण्यों में ही नहीं
कविता की उपत्यकाओं में भी
चोरी छिपे
बचा ली जाएगी।
वो
बिन ब्याही मांए
अधूरी विधावाएं
भूखा किसान
शामिल न हो किसी दंगे में
ऐसा कोई भगवान
सबके लिए
पूर्ण विराम के बाद भी
थोड़ी जगह
बची रहेगी
कविता में।
टूट जाएंगे जब
कथा के सूत्र
यहाँ वहाँ बिखर जाएंगे सब पाठ
विक्षिप्त इतिहास
टुकड़े टुकड़े रोप आएगा स्वयं को
कविता की क्यारियों में
ताकि बचा लिया जाए
फिर से पनपने को।
कविता में
बचा रहेगा सब कुछ
जो जरूरी है।
दुनिया गर्म हो चुकी होगी बहुत
तब भी
थोड़ी ठण्डक बची रहेगी
कविता में।
जब ऊपर नीचे
चहुंदिश
होगी ध्वनि ही ध्वनि
जीवन के एकमात्र निशान की तरह
थोड़ा सा सन्नाटा
बचा रहेगा
कविता में।
नहीं होने की कगार पर
पहुंच चुकी हर चीज़
सिर्फ संग्रहालयों
संरक्षित अभयारण्यों में ही नहीं
कविता की उपत्यकाओं में भी
चोरी छिपे
बचा ली जाएगी।
वो
बिन ब्याही मांए
अधूरी विधावाएं
भूखा किसान
शामिल न हो किसी दंगे में
ऐसा कोई भगवान
सबके लिए
पूर्ण विराम के बाद भी
थोड़ी जगह
बची रहेगी
कविता में।
टूट जाएंगे जब
कथा के सूत्र
यहाँ वहाँ बिखर जाएंगे सब पाठ
विक्षिप्त इतिहास
टुकड़े टुकड़े रोप आएगा स्वयं को
कविता की क्यारियों में
ताकि बचा लिया जाए
फिर से पनपने को।
कविता में
बचा रहेगा सब कुछ
जो जरूरी है।
धन्यवाद !
ReplyDeleteअच्छी कविता है , अभिषेक जी ।
ReplyDeleteजी........
ReplyDeleteजब तक कविता बची रहेगी उम्मीद रहेगी .. संवेदना रहेगी ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।