ध्वनि ,शब्द
और
अर्थ से परे
बस एक
भाषा ही नहीं
हिन्दी
!
तुम एक
जागृत संवेदना वृत्त हो ,
अभिव्यक्ति
के नवीन सोपानों में
हमारी
समग्र सामासिक चेतना को
प्रतिपल
नव्य उत्स देती !
कक्षाओं
, व्याकरण की किताबों ,
शिक्षण
की अनेक प्रविधियों व
व्यवहार
के बहु प्रसंगों को ही नहीं
हिन्दी
!
तुम
हमारे अस्तित्व की
उन
भंगिमाओं को भी पूर्ण करती हो
जिनसे
हम अपने अन्तस को
बाह्य
से जोड़ पाते हैं !
अपने
दृश्य वाक्यों की
भीतरी
अदृश्य संरचनाऒं में से ,
शब्दों
के नेपथ्य की
अर्न्तभूत
अर्थ
भाव बॊध गुहाओं से ,
वृहद
गद्यांशों पद्यांशों से ,
पराभूत
चेतना
को धुलकर साफ कर देने वाले
परिमार्जित
मानवीय ग्यान बिम्बों में
हिन्दी
!
तुम
हमारे व्यक्तित्व की
उन रस
धाराओं को
बड़े
करीने से ,
बड़ी
कुशलता , बड़ी अदब से
सजा कर
, सवांरकर रखा है
जो
हमारी सभ्यता के मूल उत्स को
समय के
क्रूर पंजों की पहुंच से दूर करती हैं ,
हमें
अक्षुण्ण बनाती हैं ।
हिन्दी
!
तुम
एकमात्र हो !
हम सोच
ही नहीं सकते कोई विकल्प
तुम्हारे
लिये
क्योंकि
हमनें
ही तुम्हें नहीं
बल्कि
तुमनें भी हमें
हमारी
समन्वय व समायोजन की
सहिष्णु
सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के साथ
समझा
है
आत्मसात
किया है
अभिव्यक्त
किया है ! ! !
बढियां प्रस्तुति शब्द दर शब्द
ReplyDelete'तुम हमारे व्यक्तित्व की
ReplyDeleteउन रस धाराओं को
बड़े करीने से ,
बड़ी कुशलता , बड़ी अदब से
सजा कर , सवांरकर रखा है
जो हमारी सभ्यता के मूल उत्स को
समय के क्रूर पंजों की पहुंच से दूर करती हैं ,
हमें अक्षुण्ण बनाती हैं ।'
- हिन्दी भाषा जिन संस्कारों से हमारा व्यक्तित्व सँवारती है ,सुदूर अतीत से भविष्य तक काल खंडों में जीवंत निरंतरता बनाए रख , बिखर कर गुमनाम होने से बचाए है - पूर्वजों की अमूल्य धरोहर बनी अपनी पहचान से संपन्न कर हमारे अस्तित्व की वाहक बन गई है .
बेहद सुन्दर!
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