छोड़ आये जो तुम
उस अजान पेड़ से बतियाने में भूलकर उसपर
थोड़ा सा गौरैया के छोटे बच्चे सा प्यार
वह प्यार के दो चमकीले मोती बन अब
दो सीपी सी आंखों में बस गया है !
उस दिन हवा की कॊठरी में
टहलते वक्त कच्ची दोपहर को
गीली हवा के ताखॊं पर रख आये तुम
प्यारी सपनीली बातों की दो पुड़िया !
वह भी मधुरी चिठ्ठी बन
दो कानों में बजती रहती है !
देखॊ !
उस दिन अजाने
नीले फूलॊं के गुच्छे को
भर आंखॊं में भर सांसॊं में
दुलराया था जो तुमने
उस दिन अजाने
नीले फूलॊं के गुच्छे को
भर आंखॊं में भर सांसॊं में
दुलराया था जो तुमने
वह भी
घने नेह की मृदुल डली सा
उस एक हिये में
अंजता रहता है !
उस एक हिये में
अंजता रहता है !
सुन्दर है , मित्र . अत्यंत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteअपने प्रवाह में डुबाती रचना..
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