मैंने जाना
कि
वह करना,
उसमें होना,
गलत है ।
मैंने उसका निषेध किया ।
खुद को उसकी तरफ बहने से रोका ।
उसके प्रति भीतर अपने
वह स्वभाव रचा
जो
अनुभव
अनुभूतियों
व निष्कर्षों पर आधारित था ।
मैंने विजय पायी क्योंकि
अन्ततः
उसके और अपने अंतर्संबंधो का निर्धारक
मैं था !
अब , जब
मेरा उससे कोई लेना देना नहीं है
तो मैं
कि
वह करना,
उसमें होना,
गलत है ।
मैंने उसका निषेध किया ।
खुद को उसकी तरफ बहने से रोका ।
उसके प्रति भीतर अपने
वह स्वभाव रचा
जो
अनुभव
अनुभूतियों
व निष्कर्षों पर आधारित था ।
मैंने विजय पायी क्योंकि
अन्ततः
उसके और अपने अंतर्संबंधो का निर्धारक
मैं था !
अब , जब
मेरा उससे कोई लेना देना नहीं है
तो मैं
उसके विरोध में भी नहीं हूं !
अब , जब
ReplyDeleteमेरा उससे कोई लेना देना नहीं है
तो मैं
उसके विरोध में भी नहीं हूं !
--बेहतरीन!!!
अद्भुत रचना ,एक मष्तिष्कवादी का विजयोल्लास !
ReplyDeleteआर्जव क्या "अर्न्तसम्बन्धों"सही है या "अंतर्सम्बंधों"?
मन का जैसे कहीं दूर-दूर कुलांचें भरना और फिर बरगत तले सुस्ताते हुए आसमान को ठेंगा दिखाना..आर्जव मुझे कुछ ऐसा क्यों लगा..?
ReplyDelete"अब , जब
ReplyDeleteमेरा उससे कोई लेना देना नहीं है
तो मैं
उसके विरोध में भी नहीं हूं ! "
बहुत अच्छी कविता
sundar bhav.
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