सोचता हूं लिखूं मैं भी कोई प्रेम गीत !
लिखूं सांझ की उतरती उदास धूप में
पीली रोशनी के वलय-सा जगमगाता कनेर !
लिखूं भॊर की पहली किरन को
रंगों के गीत पढ़ाता जवांकुसुम !
लिखूं निशा- वियोग- व्याकुल, वृन्त-प्रछ्न्न
उषा के नासापुटों का गन्धमादक श्वेत नारंगी पारिजात !
लिखूं दूब की पलकों पर रजत स्वप्निल तुहिन कन देख
शिशिरागमन संदेश प्रमुदित आम की चमकीली नयी कोपल !
सोचता हूं लिखूं मैं भी कोई प्रेम गीत !
लिखूं चिड़िया !
लिखूं तितली !
लिखूं हवा !
और
फिर
धूप ! ! !
लिखूं सांझ की उतरती उदास धूप में
पीली रोशनी के वलय-सा जगमगाता कनेर !
लिखूं भॊर की पहली किरन को
रंगों के गीत पढ़ाता जवांकुसुम !
लिखूं निशा- वियोग- व्याकुल, वृन्त-प्रछ्न्न
उषा के नासापुटों का गन्धमादक श्वेत नारंगी पारिजात !
लिखूं दूब की पलकों पर रजत स्वप्निल तुहिन कन देख
शिशिरागमन संदेश प्रमुदित आम की चमकीली नयी कोपल !
सोचता हूं लिखूं मैं भी कोई प्रेम गीत !
लिखूं चिड़िया !
लिखूं तितली !
लिखूं हवा !
और
फिर
धूप ! ! !
जरूर लिखिये
ReplyDeleteलिखिये सम्वेदनाओ की आहट
लिखिये जिन्दगी की अकुलाहट
प्रेम गीत लिखिये
मनमीत लिखिये
लिखूं चिडिया तितली हवा ..लिखूं प्रेम गीत ...
ReplyDeleteनिहायत खूबसूरत शब्दों का प्रयोग ..!!
लिखिये भाई!!!
ReplyDeleteवैसे अच्छा लिख गये!!
आर्जव, मैं मंत्रमुग्ध हूँ शब्दों के ऐसे प्रयोग पर।
ReplyDeleteसुबह हसीन हो ग्ई। वाह !
चलताऊ टिप्पणियों के चक्कर में न पड़ना, रचते रहना।
अपने शब्दों को असुविधा वाले स्थानों पर भी भटकने दो। मुझे यकीं है कि बहुत उम्दा अक्षर उभरेंगे।
अच्छी कविता ...
ReplyDeleteप्रेम गीत और शेष सृष्टी का व्यापर भी ...
आभार ... ...
सुन्दर शब्द सुन्दर भाव ..बहुत पसंद आई यह रचना ..लिखते रहे शुक्रिया
ReplyDeleteसोचता हूं लिखूं मैं भी कोई प्रेम गीत !
ReplyDeleteलिखूं चिड़िया !
लिखूं तितली !
लिखूं हवा !
और
फिर
धूप ! ! !
बहुत खूब ...आप लिखिए तो सही हम आते रहेगे पढने ....!!
waah saara blog padh kar aisa laga ki real mein kuch padha hai.........ONU
ReplyDeleteमैंने समझा था कि तुम लिख ही नहीं रहे इस वक्त । तुम्हारी आदत भी तो है ऐसी । छुपा-छुपी !
ReplyDeleteऔर
ReplyDeleteफिर
धूप ! ! !
अन्त मे धुप जरुरी थी. बहुत सुन्दर.
शिल्प का मदमाता सौन्दर्य इस कविता में आर्य आर्जव सुन्दरतम है..!!!
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