A Chang Woman carrying her child. 19954. Copyright Protected |
आओ नागओं की पुरानी परंपरा कहती है
कि मृत व्यक्तियों के शरीर घर के बाहरी हिस्से में बांस के बने ताबूत में रखे जाते
हैं । हांलाकि उन पुराने दिनों में आओ नागाओं
के घर में सिर्फ दो ही कमरे हुआ करते थे। अतः पर्याप्त समय तक वहां रखने के बाद शरीर
को कब्रिस्तान में ले जाकर नष्ट कर दिया जाता है. लेकिन मृत शरीर को कब तक घर में रखना
है यह मरने वाले की स्थिति अथवा मृत्यु के तरीके व व्यक्ति के अनुसार निर्धारित किया
जाता है. जैसे अगर कोई फसल काटने के समय मरता
है तो नयी फसल के पके हुये चावल से उसका “त्संग्जू” अनुष्ठान किया जाता है और छह दिनों
तक उसके शरीर को घर पर रखने के बाद कब्रिस्तान में ले जाकर दफना दिया जाता है. किन्तु
यदि आदमी के स्थान पर औरत की मृत्यु हुयी है तो उसे छह दिनों के बजाय पांच दिन ही घर
पर रखा जाता है. “त्संग्जू” अनुष्ठान दोनों के लिए एक जैसे होते हैं . कब्रिस्तान में
दफनाये जाने के पहले जितनें दिन ताबूत घर पर रहता है उस समय को “लेप्तुसंग्संग” या
“लेप्तुसंग्संग-असंगबा कहते हैं.
इस अवधि के दौरान , चाहे वह पांच
दिन की हो या छह दिन की , गांव का प्रीस्ट उस ताबूत की रक्षा किया करता है. सुदूर अतीत के पुराने दिनों में घर पर रखे गये ताबूत
की कब्रिस्तान में दफनाये जाने तक रक्षा करना प्रीस्ट लोगों का परम कर्तव्य हुआ करता
था.
ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु के समय
किया जाने वाला अनुष्ठान सिर्फ पके हुये नये चावल से ही किया जाता है. इस तरह अगर कोई
आदमी या औरत मर जाती है तो उसका ताबूत तब तक घर पर रखा जाता है जब तक की खेतों की कटायी
से मृत्यु का अनुष्ठान करने के लिए नया चावल प्राप्त नहीं हो जाता. यहां तक कि मान
लीजिये अगर कोई बुवायी के समय यानी मार्च/ अप्रैल में ही मर जाता है तो उसका ताबूत
कटायी के समय तक यानी अगस्त या सितम्बर के शुरुआत तक रखा जाना चाहिये. ताकि कब्रिस्तान
में ले जाने के पहले नये चावल से मृत्यु का अनुष्ठान किया जा सके और मृत्युलोक “डुपुली” जाते समय आत्मा
(Soul) अन्न , सब्जियां , मांस या कुछ भी अन्य खाने योग्य वस्तुएं अपने साथ ले जा सके.
इस तरह कुछ मामलों में कई ताबूत कब्रगाह
जाने के पहले कई महीनों तक अनुष्ठान के लिए चावल के इन्तजार में घर पर सबके साथ रखे
रहते थे. क्योकिं किसी भी आदमी या औरत को बिना अनुष्ठान के कब्रगाह में नहीं ले जाया
जाता था, सिवाय उन लोगों के जिनकी मृत्यु अपोडिया (लज्जास्पद मृत्यु जैसे पानी में
डूब कर मरना) हो। इसलिए मैं अभी जो कथा कहने जा रहा
हूं वह भी आओ नागओं की इसी प्रकार की परंपरा से जुड़ी हुयी है.
एक बार की बात है. रेथु
नामक गांव में एक परिवार रहता था जिसमें तीन सदस्य थे – पति पत्नी और एक छोटा बच्चा.
एक बार ऐसा हुआ कि पत्नी बीमार पड़ी और बहुत लम्बे समय तक बीमार रहने के बाद उसनें अपनी
अन्तिम सांस ली. अपने बीमारी के दिनों में जब वह मृत्यु-शैया पर पड़ी हुयी थी, उसने
अपने पति को बुलाया और उसे शपथ दिलायी कि वह उसकी मृत्यु के बाद दूसरी शादी नहीं करेगा.
ऐसा उसने सिर्फ इसलिए किया कि उसका बच्चा उसकी मृत्यु के बाद किसी सौतेली मां के हाथों
कष्ट न झेले. उसकी इस बात पर पति सहमत हो गया व उसने पुनः शादी न करने व जीवन भर विदुर
रहने की शपथ ली.
इसके कुछ क्षणॊं बाद ही पत्नी की
मृत्यु हो गयी और परम्परा के अनुसार उसकी देह को एक ताबूत में बन्द करके घर के बाहरी
कमरे में रख दिया गया.
इन परिस्थितियों में, जल्द ही, अपनी पत्नी की मृत देह ताबूत में रख कर और अपने बच्चे
को अकेले छोडकर, पति अक्सर नये साथी की तलाश में बाहर जाया करता था. वह रात में लड़कियों
के अरेजू (एक तरह का छात्रावास जहां कुवारी लड़कियां रहती हैं) भी जाया करता था. एक
रात हमेशा की तरह अपनी आदत के अनुसार बच्चे को सोया हुआ छोड़ वह घर से दूर चला गया.
उस काली रात बच्चा नींद से जग गया और अपने आसपास किसी को न पाकर जोर जोर से बहुत देर
तक रोता रहा. वहां कोई नहीं था जो बच्चे को उसके बिस्तर से उठाता और उसे चुप कराता
.
इन परिस्थितियों मॆं , ताबूत में मां
की आत्मा इस हद तक द्रवित हो उठी कि वह अब और अधिक समय तक मूक द्रष्टा नहीं रह सकी.
वह अपने बच्चे के अत्यधिक नजदीक आ गयी. अपने अत्यन्त प्रगाड़ व स्थायी मातृ-प्रेम के
साथ लोरी गाने लगी ताकि उसका बेटा सो जाय.
जब वह इस प्रकार गा रही थी तभी वहां
उसका पति वापस आया. थोड़ी ही दूर से उसने लोरी सुनी और उसे महसूस हुआ कि जरूर कोई है जो उसके न रहने पर उसके बच्चे की देखभाल
करता है . इसके ठीक विपरीत जब वह घर में घुसा तब अपने बच्चे के बगल में उसने अपनी पत्नी
का ताबूत देखा और तुरन्त ही समझ गया कि लोरी गाने वाला कोई और नहीं बल्कि ताबूत में
मौजूद उसकी पत्नी की आत्मा ही है .
पति को देखकर तुरन्त ही ताबूत उठ
खड़ा हुआ और उसकी तरफ बढ़ने लगा. यह देख बच्चे का पिता अत्यन्त भयभीत हो गया और ताबूत
से बचने के लिए यहां वहां भागने लगा.
ताबूत ने उसे गांव की गलियों सड़कों
पर दौड़ा लिया . इस दौरान ताबूत से एक विचित्र तरह की आवाज आ रही थी. ताबूत से भागते
भागते वह मोरूंग ( एक पवित्र स्थल) पहुंच गया. आओ लोगों का ऐसा विश्वास है कि कोई आत्मा
या कोई शक्तिशाली शैतान भी मोरुंग में प्रवेश नहीं कर सकता, खासकर उसके मुख्य रास्ते
को पार करके. और मोरुंग में सामान्य घरों की तरह अन्य खिड़कियां और दरवाजे नहीं होते.
मोरूंग के दरवाजे पर ताबूत धराशाही
हो गया, दुबारा कभी न उठने के लिए.
गांव में घटा यह आश्चर्य उस व्यक्ति के लिए और उन
सबके लिए जिसने यह सुना , बहुत बड़ा सबक साबित हुआ.
इस कहानी में जिस मां का अपने बच्चे
के लिए असीम प्यार था, जिसनें कब्रिस्तान जाकर भी अपने बच्चे का ध्यान रखना न छोड़ा,
उसका नाम कुछ और नहीं बल्कि यासानारो व उसके अभागे पति का नाम लेटरसंग था.
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