अवनि के आभामण्डल से
हजारों प्रकाश वर्ष दूर
गहन अन्तरिक्ष में
जो नीला अंधेरा है वही तुम्हारा रंग है ।
विस्तृत अज्ञात
नामहीन शब्दरहित
अनेकानेक आकाशगंगाओं में
पसरा जो निर्वाती सन्नाटा है वही तुम्हारी भाषा है।
मेरे मैं का वह सीमाहीन हिस्सा जिसे न समझ पाता हूं न जान
को ही लेकर तुमने बिखेर दिया है
हर अन्त के उस पार
देकर हर रूप, गति, नाम, परिधि के
मर्दन का प्रभार।
यह अन्तहीन परा विमीय विस्तार ही
तुम्हारा प्रेम है।
मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ।
हजारों प्रकाश वर्ष दूर
गहन अन्तरिक्ष में
जो नीला अंधेरा है वही तुम्हारा रंग है ।
विस्तृत अज्ञात
नामहीन शब्दरहित
अनेकानेक आकाशगंगाओं में
पसरा जो निर्वाती सन्नाटा है वही तुम्हारी भाषा है।
मेरे मैं का वह सीमाहीन हिस्सा जिसे न समझ पाता हूं न जान
को ही लेकर तुमने बिखेर दिया है
हर अन्त के उस पार
देकर हर रूप, गति, नाम, परिधि के
मर्दन का प्रभार।
यह अन्तहीन परा विमीय विस्तार ही
तुम्हारा प्रेम है।
मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ।
औपनिषदिक! अलभ्य प्रेम!
ReplyDelete