सूरज की डायरी का
एक पन्ना –- एक दिन !
एक पन्ना –- एक दिन !
पन्नों में तीन चार रंगों के शेड !
किशोरवय सूरज जब
किसी और अन्तरिक्ष मण्डल में था ,
रहस्यमयी प्रौढ़ निहारिकाओं से घिरा हुआ , तब
की स्मृतियां !
सूरज के दहकते मनः
प्रिज्म से होकर
दिन के पन्नें पर सात रगों के बहाने
हजारों रंगों की फुहारें
फुहरती , बिखरती , चमकती
पन्ने में पक्तियों की डाली पर
टुकुर टुकुर बैठी धरती की चिड़िया के पंखॊं पर !
पन्ने के आधे हाफ में
सूरज का परिपक्व विरागपूर्ण विगत-प्रेम- उल्लास
गहन सान्द्र पीत भासित
किसी मिथक सी सत्य धूप की रोशनायी में
लिखा जाता !
वहां उपस्थित होते हैं
कुछ अदृश्य गेरुये फूल भी
सम्बोधन चिन्हों के स्थान पर
पूर्ण और अर्ध विराम के बीच
अटके हुये, कहीं !
दिन के पन्नें पर सात रगों के बहाने
हजारों रंगों की फुहारें
फुहरती , बिखरती , चमकती
पन्ने में पक्तियों की डाली पर
टुकुर टुकुर बैठी धरती की चिड़िया के पंखॊं पर !
पन्ने के आधे हाफ में
सूरज का परिपक्व विरागपूर्ण विगत-प्रेम- उल्लास
गहन सान्द्र पीत भासित
किसी मिथक सी सत्य धूप की रोशनायी में
लिखा जाता !
वहां उपस्थित होते हैं
कुछ अदृश्य गेरुये फूल भी
सम्बोधन चिन्हों के स्थान पर
पूर्ण और अर्ध विराम के बीच
अटके हुये, कहीं !
(आधी कविता. )
ये देखो, लेखनी की क्रेडिबिलिटी ... ! जानता हूँ, यह सब कल्पित है...! पर अक्षर-अक्षर पर अद्भुत विश्वास हो रहा है...यह तुम्हारे बिंबों की सफलता है....मित्र....! तुम भी तो ऐसे सूरज हो जो किसी और ही अन्तरिक्ष से आ पहुंचे हो....!!!
ReplyDeleteआधा में भी एक पूर्णता..
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