गर्म टहकार,
कुनकुनी पीली ,
चमकीली उत्फुल्ल,
धूप
सिर्फ धूप नहीं है ।
कुनकुनी पीली ,
चमकीली उत्फुल्ल,
धूप
सिर्फ धूप नहीं है ।
दरसल वह एक बात है ।
बात –
जो सूरज धरती से किया करता है ।
रोज रोज , हर रोज ।
उसके कई अर्थ हैं ।
अनेक भाव ,
गन्ध ,
भंगिमाएं ,
कहानियां हैं ।
धरती की छाती पर टंकी
छोटी से छोटी घास से लेकर
वृहद देवदारू व वटवृक्षों तक की
व्यथा कथाएं हैं ,
आत्माभिव्यक्तियां हैं,
उल्लास के गीत हैं ,
शोक के मौन आख्यान हैं,
सूरज जिन्हें
हर रोज चुपचाप
धरती से कहता सुनता है ।
दरसल
धूप की यह ऊष्मा
सूरज का दुख है !
प्राजंल मोदक हरितिमा से आवृत्त
ये वृक्ष
वस्तुतः
सूरज के स्वप्न हैं ।
सूरज
अपने गुह्यतम सुनसान तापगर्भॊं में
इन हरे भरे वृक्षों के स्वप्न -चित्र
संजो कर रखता है ।
ये वृक्ष
ReplyDeleteवस्तुतः
सूरज के स्वप्न हैं ।
-बहुत शानदार!! आनन्द आ गया!!
वाह सचमुच कितनी सुन्दर अभिव्यक्ति -आखिर तपते सूर्य को भी तो कोई सहारा चाहिए .....
ReplyDeleteउष्मा को ऊष्मा कर लो भाई।
ReplyDeleteयह कविता वर्तुलाकार है।
बात
धूप
आख्यान
चुपचाप कहना सुनना
स्वप्नों के दु:ख
अनेक गन्ध भंगिमाएँ....
बस बुनावट देख रहा हूँ -
क्या शब्द क्या भाव!
बहुत आगे जाओगे।
मन करता है
कह दूँ -
आशीर्वाद।
सुन्दर कविता. बधाई.
ReplyDeleteek adbhut kalpanaa aur samvedansheelataa se upaji ek sashakt rachanaa ...
ReplyDeleteएक अद्भुत कल्पना और संवेदनशीलता से जन्मी एक बहुत ही सुन्दर कविता..
ReplyDeleteसही पढ़ने वाले बहुत कम हैं ।
ReplyDeleteसूरज
ReplyDeleteअपने गुह्यतम सुनसान तापगर्भॊं में
इन हरे भरे वृक्षों के स्वप्न -चित्र
संजो कर रखता है ।
...अद्भुत लेकिन हृदयस्पर्शी कल्पना!
बहुत अच्छी कविता.