तुम ,
नीले उजले रंग की
एक बूंद थी
दवात की बारी पर
ढरकी हुयी ,
एकाकी, स्वयं में थिर !
मैं,
कलम की नोक की तरह
रहा तुम्हारे पास !
तुम सूख गयी मुझमें...
और हमनें
लिखे कई हर्फ़ !
जिन्हें लोग
उस वक्त बोला किये
जब वे चुप रहे ,
किसी गहरे खोये हुये प्यार
के बारे में सोचते हुये !
वो हर्फ
सूरज, उगने से पहले
फूल, खिलने से पहले
चिड़िया, गाने से पहले
अब,
बांचा करते हैं !! !
उन कुछ
अबूझ और गज़ब के
हर्फ़ों के बारे में
सोचा करता हूं मैं भी
कभी कभी जब
नीले उदास बादलॊं के
छज्जों में लुढका हुआ
कुछ और
नहीं सोचना चाहता !