Monday, May 27, 2013

पत्तों पर ओस


Knitting Girl, 1869अनाम दिन किसी शाम
छोड़ आये जो तुम
उस अजान पेड़ से बतियाने में भूलकर उसपर
थोड़ा सा गौरैया के छोटे बच्चे सा प्यार
वह प्यार के दो चमकीले मोती बन अब
दो सीपी सी आंखों में बस गया है !

उस दिन हवा की कॊठरी में
टहलते वक्त कच्ची दोपहर को
गीली हवा के ताखॊं पर रख आये  तुम
प्यारी सपनीली बातों की दो पुड़िया !
वह भी मधुरी चिठ्ठी बन
दो कानों में बजती रहती है !

देखॊ !
उस दिन अजाने
नीले फूलॊं के गुच्छे को
भर आंखॊं में भर सांसॊं में
दुलराया था जो तुमने
वह भी
घने नेह की मृदुल डली सा
उस एक हिये में
अंजता रहता है !

Thursday, May 16, 2013

Thursday, May 9, 2013

सूरज की डायरी



सूरज की डायरी का
एक पन्ना –- एक दिन !


पन्नों में तीन चार रंगों के शेड  !


किशोरवय सूरज जब
किसी और अन्तरिक्ष मण्डल में था ,
रहस्यमयी प्रौढ़ निहारिकाओं से घिरा हुआ , तब की स्मृतियां !


सूरज के दहकते मनः प्रिज्म से होकर
दिन के पन्नें पर सात रगों के बहाने
हजारों रंगों की फुहारें
फुहरती , बिखरती  , चमकती 
पन्ने में पक्तियों की डाली पर
टुकुर टुकुर बैठी  धरती की चिड़िया के पंखॊं पर !





पन्ने के आधे हाफ में
सूरज का परिपक्व विरागपूर्ण विगत-प्रेम- उल्लास
गहन सान्द्र पीत भासित
किसी मिथक सी सत्य धूप की रोशनायी में
लिखा जाता  !
वहां उपस्थित होते हैं
कुछ अदृश्य गेरुये फूल भी
सम्बोधन  चिन्हों के स्थान पर
पूर्ण  और अर्ध विराम  के बीच
अटके हुये, कहीं !


(आधी कविता. )