अन्ना को समय ने रचा है ।
वह बहरा नहीं है ।
संस्कृतियों के मेले से छांटकर
समय
अपनी उत्तुंग प्राचीर पर
टांकता है
अव्यय मूल्यों के
कुछ क्षीण भित्ति-चित्र !
समुदाय के सामूहिक बौद्धिक नैतिक
ह्रास के प्रतिपक्ष में
अन्वेषित की जाती है
विनय व अहिंसा मण्डित
पुनर्नवा आस्था !
अन्ना को समय ने रचा है ।
वह बहरा नहीं है ।
तृषा व्योमोह में
स्वत्व के सत्व -स्खलन से
रचे जा रहे
विकृत भ्रटाचार के
व्यभिचारी विश्वकोश खण्डन में
सतत लिपि बध्द की जाती है
आत्म प्रतिबध्द,
विनिर्माण हेतु शतधा आबद्ध,
विशद व प्रासंगिक नैतिक मूल्यों की
निस्पृह संहिताएं !
अन्ना को समय ने रचा है ।
वह बहरा नहीं है ।