Tuesday, September 6, 2011

अन्ना को समय ने रचा है ।


अन्ना को समय ने रचा है
वह बहरा नहीं है

संस्कृतियों के मेले से छांटकर
समय 
अपनी उत्तुंग प्राचीर पर 
टांकता है
अव्यय मूल्यों के 
कुछ क्षीण भित्ति-चित्र !

समुदाय के सामूहिक बौद्धिक नैतिक
ह्रास के प्रतिपक्ष में
अन्वेषित की जाती है
विनय अहिंसा मण्डित
पुनर्नवा आस्था !

अन्ना को समय ने रचा है
वह बहरा नहीं है

तृषा व्योमोह में
स्वत्व के सत्व -स्खलन से
रचे जा रहे
विकृत भ्रटाचार के  
व्यभिचारी विश्वकोश खण्डन में
सतत लिपि बध्द की जाती है
आत्म प्रतिबध्द,
विनिर्माण हेतु शतधा आबद्ध,
विशद प्रासंगिक नैतिक मूल्यों की
निस्पृह संहिताएं !

अन्ना को समय ने रचा है
वह बहरा नहीं है