Saturday, July 30, 2011

विस्मृत....... सदा के लिये !


दर्द ठीक हो गया
तो बची रह गयी
अगली खुराक ,
मेज पर पड़ी है
धूल फांकती,
किसी दिन फेंक दी जायेगी
एक अर्थहीन निर्मम
सहानुभूति के साथ ।

कुछ ऐसे ही
पुरानी कापियों के पिछले पन्नों में
आधी ढरक कर
बिना पूरा हुये ही
चुप हो , ठहर कर
सूख गयी है
कई
तरह तरह की
विचित्र और अद्भुत
कविताएं  !
किसी दिन
अपनी अपूर्णता के सन्दर्भ  में
परिभाषित होकर
कर दी जायेगी
विस्मृत
सदा के लिये !