Sunday, October 10, 2010

रीडर रिस्पान्स थियरी पर........

चट्टानें बोलती हैं ।

(इसमें अर्थ न खोजें
यह कविता नहीं है । )

जो गढ़ी गयीं
मूर्ति बन गयीं
मन्दिर में सज गयीं
वे भी .

जो तोड़ी गयीं
कंकड़ बन गयीं
सड़कों पर बिछ गयीं
वे भी. 

चट्टानें बोलती हैं ।

(इसमें अर्थ न खोजें
यह कविता नहीं है । )

जो गढ़ी गयीं
मन्दिर में सज गयी
वे पद्य में बोलती हैं
भक्त से बात करती हैं ।

जो तोड़ी गयीं
कंकड़ बन गयीं
वे गद्य व सूत्र में बोलती हैं
जियोलाजिस्ट से बात करती हैं ।

तो
चट्टानें ,
हालांकि बोलती हैं
लेकिन इसमें अर्थ न खोजें
यह  कविता नहीं है !

Wednesday, October 6, 2010

थोड़ी देर ....

चलो . . . ! ! !
थोड़ी देर . . .
साथ रहें !

एक दूसरे को फोन करें
 और...
 हैलो भी ना बोलें ।

बहुत देर तक
चुप रहें . . .

और बिना  कुछ कहे
हल्की सी सांस छोड़
फोन रख दें ।

इतनी दूर होकर भी
चलो . . .! ! !
 थोड़ी देर
साथ रहें !