Wednesday, February 24, 2010

केसरिया मन


सोचता हूं सो जाऊं !
खो जाऊं !
बोझिल तन !
स्नेहिल मन !
निढाल सब छोड़ू !
मिट जाऊं !
लेकिन फिर ……….
सांझ थोड़ी देर तक की
तुम्हारी संगति याद आती है -------


तुम्हारे सानिध्य का केसर
अभी तक
मन की देह पर बिखरा हुआ है !


तुम्हारे सरल मधुर हास का चन्दन
अभी भी झींना झींना
आती जाती सांसों में गमक रहा है !


याद आता है तो कस्तूरी बन गया लगता है
विदा के अन्तिम क्षणों में
तुम्हारे उन पंकिल पलकॊं का
करुणामय आरोहण अवरोहण ! ! !

सदा रहेगा
चाह में तेरी
यह केसरिया मन ! !

Saturday, February 13, 2010

प्यार : एक डायाक्रोनिक स्टडी -2




एक प्यार
धीरे धीरे होता है ।
एकदम धीरे धीरे ।

जैसे रात भिगोये गये चने से
धीरे धीरे निकलता है
चने में मौजूद पूरे प्रोटीन से बना
एक टुइंया-सा अंकुर !

यह प्यार
शुरु शुरु में प्यार नहीं होता
लेकिन परत दर परत
प्यार बनता जाता है ।
आप पा सकते हैं
जगजीत सिंह और गुलाम अली की गजलॊं में
इस तरह के प्यार के
तमाम शिलालेख !

एक प्यार
फटाफट होता है ।
एकदम फटाफट ।

जैसे बच्चों के खेलने वाले
बड़े गुब्बारे में
किसी ने चुभो दी हो
नुकीली सुई ।

यह प्यार
शुरुआत क्या
शुरुआत के पहले से ही
प्यार ही होता है !

इस प्यार में सब चीज –
आंखों के खुलने से लेकर
आंखॊं के बन्द होने तक
सांसॊं के अन्दर लेने से लेकर
सांसों के बाहर जाने तक,
सब!
बस प्यार ही प्यार होता है ।

अब संक्षेप में कहा जाय तो
दोनों प्यारों के
अपने अपने धन और ऋण हैं !

(हांलाकि प्यार के संविधान में तो
धन और ॠण सोचना सख्त वर्जित है,
तो प्रेमी जन माफ करें ! ! ! )

एक प्यार हेलीकाप्टर तो
दूसरा मिग – २१ है !
कहने का मतलब की
इसकी कुछ बातें उसमें
और उसकी कुछ बातें इसमें
ले ली जाय
तो
चांद तक पहुचा जा सकता है !

(अन्यथा तो कोई चान्स नहीं)