Friday, September 25, 2009

जरूरी नहीं की.....



जरूरी नहीं कि
हर बार
कुछ अच्छा ही लिखा जाय ।


जरूरी नहीं कि
हर बार
कुछ पूरा ही लिखा जाय ।
जरूरी नहीं कि
हर बार
कुछ प्रशसंसनीय ही लिखा जाय ।


जरूरी नहीं कि
जो लिखा जाय
हर बार लोगों को दिखाया ही जाय ।


और फिर ……..
यह भी तो जरूरी नहीं कि हर बार
लिखा ही जाय ……….! ! !

Monday, September 21, 2009

क्योंकि तुमसे मैं प्रेम नही करता


यह समय
तुम्हारे आने का था !
और तुम
नहीं आये !!!

वैसे तो व्यस्त था मैं
अपने कामों में
जैसे रोज रहा करता हूं
लेकिन फिर भी
मेरे अन्दर से कहीं
कोई भीतरी अदृश्य देह
बार बार
मेरी इस देह से निकल
बाहर उस सीढी़ की तरफ़
ढ़ुलक ढ़ुलक जा रही है !


हर बार खुद को बांधता हूं कसकस कर
खेत में पानी बराते नाना
कहीं और हुलसते पानी पर
तावन बांधा करते थे जैसे

जरा भी नहीं चाहता मैं
कि तुम्हारे इन्तजार जैसा
कुछ भी करूं,
तुम्हारी किसी भी आहट को
अपने भीतर सुनुं,
और तुम्हारी आज की इस
आकस्मिक अनुपस्थिति से निर्मित
इस फैलते शून्य को
अपने भीतर
और वृहद होने दूं ,
जरा भी नहीं चाहता मैं

क्योंकि
तुमसे
मैं प्रेम
नहीं करता
थोड़ा सा भी नहीं , बिलकुल भी नहीं

क्योंकि कुछ भी नहीं होता इससे
कि हम रोज मिलते हैं,
बतियाते हैं हसते हैं ठिठियाते हैं ,
एक दूसरे की जिन्दगी को
मूंगफली के खाली ठोंगों की तरह
इधर उधर फेंकते हैं

मार्च महीने की
कुनकुनी ताजी ,
शिवमूरत हलवाई की
एक घुच्चड़ मस्त चाय जैसी सुबह में
सड़क के किनारे घास चरते
तन्मय , निर्लिप्त
दो बकरी के चमकीले मेमनों जैसे
या फिर
पूरा जीवन साथ बिताये
परस्पर किसी भी आकर्षण से रिक्त
दो थके बूढ़े बुढ़ियों की
किसी छोटी सी बात पर
प्रसन्न,
हल्की-सी मुस्कुराती
एक दूसरे से मिली आखों जैसे
हम
कभी कभी एक दूसरे के होने में
थोड़ा बहुत शामिल भी हो जाते हैं

(लेकिन)
सच कहता हूं
कुछ भी नहीं होता इससे !

मेरी नसों में रेगती रहती है एक टीस
जैसे गंजी के नीचे घुसी हो कोई चीटीं
की रिश्ते
सुखाये और पीटॆ जा चुके धानों के
बचे पुआलों के
हुमच हुमच कर कसे गये
बोझ होते है
घुरहू काका जिसे
ठेघुनियां ठेघुनियां कर बांधते हैं
और भूसे वाले घर में पटक आते हैं

इसलिये
प्यार व्यार कुछ नहीं करता मैं तुम्हें
और अपने भीतर दाद की तरह फैलते
इस खाली शून्य को
और फैलने से रोकना चाहता हूं

तुम नहीं आये तो क्या !! !
अभी और बहुत काम है मुझे

(दिस.२००८

Friday, September 18, 2009

पहचान


कितना जरूरी है
जीने के लिए
किसी का यह कहना
कि
सचमुच
बड़े अच्छे हो
तुम !

Friday, September 4, 2009

अन्यथा ..........


सब कुछ तुम्हारा ही है !


मेरी जीत , मेरी हार
मेरी वासनाएं ,आकांक्षाए
मेरे पाप ...........

सब कुछ तुम्हारा ही है !

मेरे मद , मेरे मोह
मेरी उद्विग्नताये , व्यग्रताएं
मेरा अस्तित्व ..........

सब तुम्हारा ही है !

मेरा क्रोध , मेरा प्रेम
मेरी उदघोशनाए , गर्जनाये
मेरे अपराध.....

सब तुम्हारा ही है !

तुमसे विलग है
मेरा
बस एक निर्णय --
सही अथवा ग़लत का !
पाप अथवा पुन्य का !
तुम्हारे इन भव्य उपहारों के प्रति .......
जिससे
मै मै हूँ
और
तुम तुम हो
एकदम प्रछन्न .......दूर दूर

अन्यथा....... ..............!!!!!!!!!!!!!!