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Sunday, March 8, 2009
Tuesday, March 3, 2009
मृत्यु
देह तो बाद में मरती है ।
अक्सर
मन बहुत पहले ही मर जाता है ।
धीरे धीरे सड़ती लाश
बची रहती है ।
लोग कहते हैं “पहुंचा हुआ” ।
दरसल ,
बहुत सारे विचार, वाद और सोच के ढ़ंग
जगह जगह खुली कब्र की तरह बिछे रहते हैं ।
स्वछंद विचरते अनेक सुन्दर मन
बकरी के मेमनों की तरह उनमें गिरते हैं ।
वापस निकल नहीं पाते हैं ।
दफ्न हो जाते हैं ।
मर जाते हैं ।
सड़ जाते हैं ।
दूर दूर तक दुर्गन्ध फैलती है ।
लोग कहते हैं यश है ।
अक्सर
मन बहुत पहले ही मर जाता है ।
धीरे धीरे सड़ती लाश
बची रहती है ।
लोग कहते हैं “पहुंचा हुआ” ।
दरसल ,
बहुत सारे विचार, वाद और सोच के ढ़ंग
जगह जगह खुली कब्र की तरह बिछे रहते हैं ।
स्वछंद विचरते अनेक सुन्दर मन
बकरी के मेमनों की तरह उनमें गिरते हैं ।
वापस निकल नहीं पाते हैं ।
दफ्न हो जाते हैं ।
मर जाते हैं ।
सड़ जाते हैं ।
दूर दूर तक दुर्गन्ध फैलती है ।
लोग कहते हैं यश है ।
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